19 साल की थी जैनब जब आई थी अपनी माँ के साथ मुंबई में| अब्बू का इन्तेकाल हुआ तो सहारा नहीं था तो मामू ने बहन और भांजी को मुंबई में अपने बंदर वाले चाल में ऊपर का कमरा दे दिया...अम्मी तो जिस दिन आई थी उसी दिन से बिल्डिंग के घरो में झाड़ू पोंछा करने जाने लगी थी| जैनब के पास तो कोई काम था ही नहीं घर में रहती खाना बनाना साफ़ सफाई करना और सो जाना बस यही ज़िन्दगी के मायने हो गए थे.... कभी कभी ज़िन्दगी बहुत बेमायने लगने लगती है और खासकर अगर वो एक लड़की की ज़िन्दगी हो जिसके सर पे बाप का साया नहीं तो फिर समझाना ही मुश्किल है |
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